#भीम VS #मीम
मुसलमानों का देश के संसाधनों पर पहला हक वाला मनमोहन सिंह का बयान अचानक नहीं आया था. ठीक इसी दौरान कोशिश हो रही थी कि:
1. शिड्यूल्ड कास्ट की लिस्ट में मुसलमानों को भी घुसाया जाए
2. मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में अलग से 15% आरक्षण दिया जाए
3. ओबीसी आरक्षण को धर्म के आधार पर बांट कर मुसलमानों को 6% अलग दिया जाए.
4. धर्म परिवर्तन करने पर भी एससी का दर्जा सुरक्षित रहे.
मुसलमानों को संसाधनों पर पहला हक देना सिर्फ बयान (दिसंबर, 2006, दिल्ली) नहीं था. इसकी प्रक्रिया चल रही थी.
रिटायर्ड चीफ जस्टिस और कांग्रेसी नेता सांसद रंगनाथ मिश्रा इसी दौरान अपनी रिपोर्ट में लिख रहा था कि मुसलमानों में भी जाति है, इसलिए उनमें भी एससी माना जाए और एससी लिस्ट में उनको भी आरक्षण दिया जाए.
ये भी सिफारिश की गई कि कोई एससी अगर धर्म बदल कर मुसलमान या ईसाई बनता है तो भी उसका एससी दर्जा बना रहे. रंगनाथ मिश्रा धर्मांतरण का रास्ता साफ करने की कोशिश कर रहे थे और सरकार की शह उनको हासिल थी.
मनमोहन सिंह 3 नवंबर, 2006 को, मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण की चर्चा छेड़ चुके थे. रंगनाथ कमीशन ने मुसलमानों को नौकरियों में 15% आरक्षण देने की सिफारिश की थी. ओबीसी के 27% से 6% काटकर मुसलमानों को देने की सिफारिश भी कांग्रेस द्वारा गठित इस आयोग में है.
मनमोहन सिंह के बयान से ठीक एक महीना पहले सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई थी, जिसने ये गलतबयानी की थी कि मुसलमानों की हालत दलितों से भी खराब है. मुस्लिम आरक्षण के लिए चौतरफा माहौल बनाया जा रहा था.
इसका सीधा नुकसान देश के सबसे वंचित एससी, एसटी और ओबीसी को होना था. रउनके विरोध के कारण ये हो नहीं पाया. इसमें आईएएस अफसर आशा दास मैडम की बड़ी भूमिका है. उसके बारे में फिर कभी.
वो भयानक किस्म के मुस्लिम तुष्टिकरण का दौर था. मगर क्यों? कांग्रेस का मकसद क्या था?
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सोचो ये किसने लिखा होगा?
इस दिलीप सी मंडल तक को भी अपने वर्ग के हित और अहित का पता है पर इन जातिवीरों को नहीं।