मुख्यमंत्री क़े स्थान पर मुख्य अतिथि मांडर विधायक शिल्पी नेहा तिर्की किय जायगा
राजी पाड़हा मुड़मा जतरा संचालन समिति ने उनके आगमन पर किया उनका पारंपरिक कड़सा नृत्य एवं नृत्य संगीत से शक्ति स्थल से पाड़हा भवन क़े मुख्य मंच तक स्वागत,
कड़सा में दीप प्रज्जवलित कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने किया किया दो दिवसीय ऐतिहासिक मुड़मा जतरा का शुभारंभ,
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मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार क़े द्वारा चलाई जा रही विभिन्न जन कल्याण योजनाओं को बताते हुए कहा कि पाड़हा व्यवस्था हमारे हमें पूर्वजों क़े समय से चली आ रही है,हमें अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा क़े लिए सदैव जागरूक रहने की आवश्यकता है।
मांडर :- रांची-डलटेनगंज मार्ग पर मांडर प्रखंड स्थित मुड़मा मेशाल गांव में लगनेवाले मुड़मा जतरा का आदिवासी समाज में विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ष दशहरा के दसवें दिन यह जतरा आयोजित होता है। इस दिन सरना धर्मगुरु के अगुवाई में 40 पड़हा के पाहन,पूजार,कोटवार, महतो क़े द्वारा अधिष्ठात्री शक्ति के प्रतीक जतरा खूंटे की परिक्रमा व जतरा खूंटा की पूजा- अर्चना किया गया।
पाड़हा झंडे के साथ मेला स्थल पहुंचे पाहन (पुजारी) ढोल, नगाड़ा, मांदर के थाप अन्य
ग्रामीणों के साथ नाचते-गाते आते हैं और मेला स्थल पर पाहन पारंपरिक रूप से सरगुजा के फूल सहित अन्य पूजन सामग्रियों के साथ देवताओं का आहवाहन करते हुए ‘जतरा खूंटा’ का पूजन करता है एवं प्रतीक स्वरूप दीप भी जलाया जाता है। इस पूजन में सफेद एवं काला मुगी की बलि भी चढ़ाई जाती है। इस प्रकार मेला का आरम्भ किया जाता है। मेले मेशामिल लोग रल्पा चल्पा, बाघ, घोड़ा, हाथी, मगरमच्छ, नाव, शेर, मछली, तेंगरा, छाता सहित अन्य समुदायिक प्रतिक चिन्हों के साथ आते हैं और गाजे बाजे के साथ घंटों नाचते हैं। इसके बाद शक्ति स्थल की परिक्रमा भी किया जाता है। सरना धर्मगुरु बंधन तिग्गा के अनुसार यह आदिवासियों का शक्ति पीठ है। मुड़मा गांव उरांव तथा मुंडा आदिवासी समुदायों का मिलन स्थल भी है। इस मेले सभी समुदाय के लोग आते हैं
और सूख-समृद्धि व शाति की कामना करते हैं। इस मेले में काफी दूर दराज के लोग आते हैं और जतरा का मजा लेते हैं। सभी तरह की दुकानें, झूला,मौत का कुआँ,सर्कस में भीड़ देखते बन रही है इसक़े अलावे अन्य सामानों की खूब बिक्री जारी है।
बाईट –. धर्मगुरु बंधन तिग्गा का